The Poet

अकेलापन है, पर फिर भी कम है ‘मनु’ अपने आप से फ़िराक चाहता है खुशी का शोर सहा नहीं जाता […]

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तू मुझसे खफा है, मैं भी अपने आप से तूने कहा सब झूठा है, सब सारी बातें सब कसमें, वो

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बिखरे हुए कांच के मेरे दिल के टुकड़ों पे चल के आनामुझे तक पहुंचने का कोई और रास्ता नहीं है!

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मेरे इश्क का सबब अगर मंजूर न थातो बर्दाश्त ही कर लेते मेरे गुनाहों को – राकेश शुक्ल ‘मनु’

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दामन में मेरे दाग़ क्या कम थे पहले?के सीने में खंजर डाल कर पूछते हो ‘सब सुकूं से तो है’?

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बहुत पहले इक मोड़ पर तू मुझे छोड़ आया बेहतर था ज़िंदगी ली होती, इस लाश का बोझ तो न

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अगर अकेले रहने की सज़ा देनी थी तो आया ही क्यों था अंधेरे में रौशनी का चिराग़ जलाया ही क्यों

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