अगर अकेले रहने की सज़ा देनी थी

तो आया ही क्यों था

अंधेरे में रौशनी का चिराग़

जलाया ही क्यों था

हमारी बेखुदी के किस्से तो मालूम थे तुझे

झूठ ही सही दिल लगाया ही क्यों था

तू अकेला नहीं जो बेगैरत, बेमुरव्वत कहता है हमें

साथ चलने का फिर हौसला दिखाया ही क्यों था

अब उस अंधे मोड़ पर फिर अकेला खड़ा हूं

थामना नहीं था तो साथ चलाया ही क्यों था

हम ने कब से अपने गिरे हुए जमीर से वफ़ा कर ली

तू बदल देगा ये खयाल तुझे आया ही क्यों था

अब कहां जाऊं इस भरी दुनिया में

जिसे को अपनाया उसने ठुकराया ही क्यों था

– राकेश शुक्ल ‘मनु’


Scroll to Top