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क्या है तेरी बिसात मनु?अपने आप को हौसला देते देते खुद ही रो पड़ा! – राकेश शुक्ल ‘मनु’

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“एक और मौका” पुरानी मोहब्बत की खातिर ही सही इश्क का एक मौका दिया होता जानता तो मैं भी हूं

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नमाज़ी थे पर जब दोजक में पहुंचे तो खुदा से पूछा,जवाब आया कि सजदा तो था पर तेरे नाम का

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गहरे ज़ख्म और नाकामयाब मोहब्बत,कभी भरते नहीं हरे ही रहते हैं!– राकेश शुक्ल ‘मनु’

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हमनें सोचा था तेरी मोहब्बत हमारी तमाम उम्र का सिलसिला होगा,तेरी रुखसत के बाद जाना मोहब्बत ही मोहब्बत का सिला

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क्या बदल गया तेरे न होने से क्या बदल गया तेरे न होने से क्या भोर नहीं होती, या सांझ

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