क्या बदल गया तेरे न होने से
क्या बदल गया तेरे न होने से
क्या भोर नहीं होती, या सांझ
क्या पंछी नहीं चहचहाते
मेमने अपनी मां के लिए नहीं मिमियते
ये शहर अब भी कोलाहल से भरा है
गाडियां अब भी दौड़ती है
ये लोगों की भीड़ न जाने कहां जा रही है
सब को कुछ काम है शायद
तुम्हें भी
बस मैं वहीं खड़ा हूं जहां तुम छोड़ के गईं थीं
कोई आशा नहीं है मुझे
तुम्हारे लौट आने की
तुम्हारा मुझे गले लगाने की
वहीं रह गया हूं
पैर बंध गए हैं जैसे
अपना ही बोझ उठा नहीं सकता
शायद मुझसे भूल न होती
परस्थितियां मेरे प्रतिकूल न होती
सोचने से हल नहीं मिलते
मांगने से माफ़ी नहीं मिलती
मेरे पापों का कोई प्रायश्चित नहीं
लेकिन इस दुनिया को कोई फर्क नहीं पड़ता
क्या बदल गया तेरे होने से
– राकेश शुक्ल ‘मनु’ / original by Rakesh Shukla