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नमाज़ी थे पर जब दोजक में पहुंचे तो खुदा से पूछा,जवाब आया कि सजदा तो था पर तेरे नाम का

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“एक और मौका” पुरानी मोहब्बत की खातिर ही सही इश्क का एक मौका दिया होता जानता तो मैं भी हूं

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क्या है तेरी बिसात मनु?अपने आप को हौसला देते देते खुद ही रो पड़ा! – राकेश शुक्ल ‘मनु’

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तेरे मिलने की चाहत में मुद्दत गुज़र गईआखिर जब तूने बुलाया घर में आग लगी थी– राकेश शुक्ल ‘मनु’

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सोचा तो था तेरा दर ही मेरा मकाम होगा तेरी आगोश ही आखिरी पैगाम होगा अब बेसबब भटकतां हूं ऐसे

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दरिया में डूबते हुए किनारे पर तुझ तक मेरी आवाज़ तो पहुंची,अब जियूं या डूब जाऊं कोई ग़म नहीं– राकेश

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वफ़ा या बेवफाई का मैनें कोई इलज़ाम कभी लगाया ही नहीं,तेरी आगोश का एक अरमान था जो आज पूरा हो

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मैं अब किसी की भी उम्मीद तोड़ सकता हूँ,मुझे किसी पे भी अब कोई ए’तिबार नहीं! – जव्वाद शैख़

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