तुझसे बिछड़ने का दर्द इतना था

की कई बार कोशिश की कि मर ही जाते

फिर भी तमाम उम्र लग गई जाते जाते

तेरे इश्क के सिवा कोई फन भी तो न था

तेरे यादों के सिवा कोई सहारा न था

अगर कोई और राह लेते भी तो भी किधर जाते

हमारी उम्र तुझको दराज होती तो कुछ काम तो आती

हमारे जनाजे का शोर तेरी शहनाई में दब ही जाता

भले ही रकीबो की बाहों में तेरे दिन निकल जाते

बिना तेरे जीने का बोझ ही किस्मत है तुम्हारी ‘मनु’

वरना क्या कसम थी तेरी की जान न चली जाती आते जाते

लाख चाहा तेरी दुनिया में न जिएं हम

फिर भी तमाम उम्र लग गई जाते जाते

– राकेश शुक्ल ‘मनु’


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