मुद्दतें दर्द की लौ कम तो नहीं कर सकतीं

ज़ख़्म भर जाएँ मगर दाग़ तो रह जाता है

दूरियों से कभी यादें तो नहीं भर सकतीं

खुल्लियत ए अहमद, page 351


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