जला है जिस्म जहां दिल भी जल गया होगा

कुरेदते हो जो अब राख जुस्तुजू क्या है

हुआ है शह का मुसाहिब फिरे है इतराता

वगर्ना शहर में ‘ग़ालिब’ की आबरू क्या है


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