या खुदा उससे अलग

मुझे अपनी कोई खुदाई ना दे

ऐसा कभी सितम न कर

के उसका प्यार मिले पर दिखाई न दे

के भीड़ में वो मुझे पुकारे

पर मुझे सुनाई न दे

जिसकी मुस्कान से खिल जाता था चमन

दमके वो चेहरा और मुझे दिखाई न दे

जमाने का प्यार मिले न मिले

उसकी मुझे रुसवाई न दे

उसकी आंखों में तारे हो इतने

में जब टूट कर गिरूं उसे दिखाई न दे

खूबसूरती हो कायनात में तेरी

लेकिन किसी को वैसी रानाई न दे

उसके दरवाज़े पर ठोकर खाकर गिरुं

तो सुनकर भी उसको सुनाई न दे

उसकी डोली का जब हो शगन

सबको दे पर मुझे शहनाई ना दे

जिसके दीदार के इंतजार में गुजरी हो उम्र

वो रकीब के साथ निकले तो दिखाई न दे

अगर नसीब हो जन्नत मुझे

वो ही दिखे हूर कोई और दिखाई न दे

उससे मिलने में देर न इतनी हो जाए

धूप तो हो पर तू मुझे परछाई न दे

या खुदा उससे अलग

मुझे अपनी कोई खुदाई ना दे

– राकेश शुक्ल ‘मनु’


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