ख़्वाब
ख़्वाब तो हमने भी देखे थे
हर सुबह तेरे बदन की महक के
हर दिन तेरे इंतजार के
दफ़्तर में कमीज के बटन पे तेरे बाल का मिलना
ढलते सूरज में छिपी उन शामों की यादें
हर रात तेरी आगोश के
और उसके बाद
मदहोश कर देने वाली तेरी खुशबू
लेकिन ख़्वाब हकीकत नहीं
ख़्वाब ख़्वाब ही होते हैं
नींद टूटती है तो बिखर जाते हैं
– राकेश शुक्ल ‘मनु’