अकेलापन है, पर फिर भी कम है ‘मनु’ अपने आप से फ़िराक चाहता है खुशी का शोर सहा नहीं जाता दुःख के सन्नाटे में पनाह चाहता है ‘मनु’ की यादों का ये है सबब याद है जो वो भूलना चाहता है मसरूफ है जिंदगी सभी की तमाम मातम में अपने औरों का आसरा चाहता है गलतफहमियों में बीती एक उम्र इश्क के एक पल के सच की सज़ा चाहता है – राकेश शुक्ल ‘मनु’