मोहब्बत का कामयाब होना नहीं

मोहब्बत का होना ही मोहब्बत का सिला है

यही सोच कर हम भी चले थे तेरे सफर में

वादे, कसमें, यादें सब छूटती गई

उम्मीदें टूटती गई

फिर भी अहसास बाकी था एक

मेरे लफ्जों को तेरे पैर जब रौंदते होंगे

पैरों को तेरे कुछ नरमी तो देते होंगे

तेरे बदन से लिपटी वो महक

याद शायद मेरी दिलाती होगी

जब तू थक कर किसी दरख़्त के नीचे सो जाता होगा

ओस की बूंदों में मेरे अश्क घुल कर गिरते होंगे

तेरे लायक न हो सके न सही

लेकिन अगर मोहब्बत ही मोहब्बत का सिला है

तो तुझे वो शक्स कभी याद तो आता होगा

राकेश शुक्ल ‘मनु’


Scroll to Top