रिश्ते तब तक ही रहते हैं
जब तक उनको तोड़ना मुश्किल हो
यादों का सिलसिला भी टूट जाता है
यकीनन अभी उसको छोड़ना मुश्किल हो
हमने भी राकीबों की तरह बनना चाहा
भले ही अपने आप को मोड़ना मुश्किल हो
तमन्ना थी तू भी अपने आंचल में छुपाता
लाख हमारे दिल की कालिख का ओढ़ना मुश्किल हो
आबरू ओ इज्जत हमें भी अपनी थी प्यारी
कितना तुझे अपने उसूल तोड़ना मुश्किल हो
रुख हमनें भी जिंदगी का बदलना चाहा
तेरी सूरत से भी मुंह मोड़ना मुश्किल हो
सजदे अभी भी करते हैं तरफ में तेरी
क्या जानते थे आदतों को इतना तोड़ना मुश्किल हो
आहट पर उठ जाते हैं कदम के शायद तू हो
भले पैरों की जंजीरों तो तोड़ना मुश्किल हो
रिश्ते तब तक ही रहते हैं
जब तक उनको तोड़ना मुश्किल हो
– राकेश शुक्ल ‘मनु’