जिसको मां का तिरस्कार मिला हो

वो औरों में प्यार खोजता है

उसका पागलपन कोई नहीं सहेगा

लेकिन फिर भी यही सोचता है

प्रेमिका की आगोश में भी

ममता का आंचल चाहता है

जिसकी खामियों मां ना भुला पाई हो

कोई और क्यों करेगा न जानता है न बूझता है

जन्मों का प्यार सिर्फ किताबों में है

इस जमाने में इसको कौन पूछता है

सीता लक्ष्मण रेखा के उस पार खड़ी है

कलयुग के रावण को कहां बूझता है

प्रेमचंद की काल्पनिक मां की ममता

इस दौर में तमाम उम्र ढूंढता है

जिसको मां का प्यार ना मिला हो

वही प्यार सबसे पूछता है

– राकेश शुक्ल ‘मनु’


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