एक दिन मैं तुझे छोड़ जाऊंगा
तू तो वैसे भी बहुत दूर निकल गया
मैं भी कोई और मोड़ लूंगा, तुझे छोड़ जाऊंगा
कुछ जरूरी काम हैं बाकी वो कर लूं
तेरा दीवार-ओ-दर यकीनन छोड़ जाऊंगा
फिज़ा में तेरे बदन की खुशबू है अभी भी
इन हवाओं का रुख मोड़ लूं, फिर तुझे छोड़ जाऊंगा
उगते हुए सूरज की किरण अभी भी देती है एक आस
आंखों की रोशनी चली जाए, फिर तुझे छोड़ जाऊंगा
इस उम्र में तेरे नाम की कुछ सांस है बाकी
ये सिलसिला भी तोड़ जाऊंगा, मैं तुझे छोड़ जाऊंगा
जिस पत्थर पर तेरा नाम लिखकर बनाया था काबा
बारिशों में पिघल जाए, मैं तुझे छोड़ जाऊंगा
वो मरमरी सफेद बादल जिनमें दिखता था तेरा चेहरा
उन मौसमों का सिलसिला तोड़ दूं, तुझे भी छोड़ जाऊंगा
ये जो दर्द है के कम नहीं होता
इसकी कमर तोड़ जाऊंगा, मैं तुझे भी छोड़ जाऊंगा
तू तो वैसे भी बहुत दूर निकल गया
मैं भी नया मोड़ लूंगा और तुझे छोड़ जाऊंगा
– राकेश शुक्ल ‘मनु’