मेरी तेरी ज़िंदगी में अब कोई जगह नहीं
कहता है प्यार की उस पहली महक के बाद
तुझे प्यार था ही नहीं
शायद सिर्फ एक आस थी उसके होने की
सालों तक तूने अपने सीने की आग को छुपाकर रखा
होठों पर न आएं हर्फ, दबाकर रखा
अब जब प्यार के होने का शीशा टूट गया,
तो तुझे साफ दिखता है, प्यार क्यों नहीं है
क्योंकि इतना कमजर्फ इतना कमजोर हूं मैं
इतने बड़े फासले हैं हमारी जिंदीगियों के
जो मैं कभी तय न कर पाऊंगा
तेरे बराबर न पहुंच पाऊंगा
हर एक बात पर तू कहता है
मेरी तेरी ज़िंदगी में अब कोई जगह नहीं, न कभी होगी
अब मान ही लेता हूं, अतीत में जी नहीं सकता
बहुत काम हैं बाकी तो अभी मर नहीं सकता
वैसे भी
तेरे दामन में मेरे खून के निशान कभी रहे ही नहीं
कहीं मेरा नाम था ही नहीं, मिटाने कि जरूरत न होगी
कभी मेरे जिक्र पर पर्दा डालने की जरूरत न होगी
समय में याद भी मिट जायेगी
समय में मेरे जख्म भी भर जाएंगे
जा तो रहा हूं बस इतना था
के गिले मेरे भी वही थे
– राकेश शुक्ल ‘मनु’