सोचा तो था तेरा दर
ही मेरा मकाम होगा
तेरी आगोश ही
आखिरी पैगाम होगा
दरबदर रूह बदन ढूंढती हो जैसे
तेरी गोद में सर रख मर ही जाता
आखिर ही सही, सांस तेरी खुशबू से भर ही जाता
लेकिन ख्वाब और असल में फासले है इतने
मुझे छोड़ तूने तय कर लिए हैं जितने
अब कोई उम्मीद ही नहीं बची
मेरे महबूब मुस्तकबिल में तेरे होने की
– राकेश शुक्ल ‘मनु’ / original by Rakesh Shukla