“एक और मौका” पुरानी मोहब्बत की खातिर ही सही इश्क का एक मौका दिया होता जानता तो मैं भी हूं वस्ल-ए-यार नहीं नसीब में मेरे झूठा ही सही, इक दिलासा ही दिया होता समंदर की लहरों से अबतक कौन लड़ सका है दिल ही रखने के लिए, एक किला रेत का बनाने दिया होता पुरानी यादों के अंधेरे में कोई आस नहीं टिमटिमाता ही सही, उम्मीद का एक चिराग़ रख दिया होता – मनु स्मृति poetry by Rakesh Shukla