तुम चली तो गईं
लेकिन एक टूटा फूटा आदमी
एक टूटे दिल के साथ छोड़ गईं
जिसका बोझ मैं अकेला उठा नहीं पा रहा हूं
मैं कभी साधारण नहीं था
असाधारण क्षमता से धनी भी नहीं
बस कुछ टूटा सा
दिल में एक गुबार लिए पैदा हुआ
एक ऐसा तूफान जो कभी थमा ही नहीं
कभी प्रेम हो नहीं पाया
कभी किसी स्त्री का स्नेह नहीं मिला
उस दिन तक, जब तक तुम न मिली
जिस आदमी ने जीवन को
सागर किनारे बनते बिगड़ते रेत के ढेर में देखा हो
वह प्रेम करना नहीं जानता
लेकिन सच है जिसके पास जो नहीं होता वही ढूंढता है
जिसे सिर्फ तिरस्कार और उपेक्षा मिली हो
वह प्रेम चाहता है, अघाड़, असीमित प्रेम
मैं भी तुम्हें महान लेखकों की कथाओं में
चित्रकारों की तस्वीरों में खोजता रहा
और जब तुम मिली तुम बिलकुल वैसी थीं
जैसा मैंने सोचा था
कहते हैं प्रेम एक तूफान की कर आता
उसकी लौ में दिल जलता है
आदमी न सोता है न जागता है
लेकिन ऐसा हुआ नहीं
तुम्हारे आने से ऐसा लगा
किसी ने उबलते हुए दूध पर पानी के छींटे डाल दिए
यकायक वो आग जो जिंदगी भर से जल रही थी
शांत हो गई
जिस ममता को जीवन भर ढूंढता रहा
मिल गई
जीवन भर का प्रेम कुछ महीने ही चल सका
लेकिन तुम्हें क्यों दोष दूं
एक कुंठित आदमी को कौन आजीवन स्नेह दे पाता
तुम चली गईं
और पीछे पहले से कहीं ज्यादा टूटा आदमी छोड़ गईं
– ’एक टूटा हुआ आदमी’, Rakesh Shukla